अब्बास मुमताज़
ग़ज़ल 7
अशआर 1
कहीं पे मंतिक़ कहीं दलाएल ज़रूर होंगे
रह-ए-जुनूँ में सवाल हाइल ज़रूर होंगे
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere