अब्दुल सलाम बंगलौरी
ग़ज़ल 3
अशआर 4
ईद का दिन है गले मिल लीजे
इख़्तिलाफ़ात हटा कर रखिए
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जो ये हिन्दोस्ताँ नहीं होता
तो ये उर्दू ज़बाँ नहीं होती
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दिल की हालत बयाँ नहीं होती
ख़ामुशी जब ज़बाँ नहीं होती
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शेर कहने की तबीअत न रही
जिस से आमद थी वो सूरत न रही
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