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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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अब्दुल्लाह जावेद

1931

शायर और अदीब, बच्चों के अदब के साथ साहित्यिक व सामाजिक विषयों पर आलेख भी लिखे

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अब्दुल्लाह जावेद

ग़ज़ल 19

अशआर 18

आप के जाते ही हम को लग गई आवारगी

आप के जाते ही हम से घर नहीं देखा गया

इस ही बुनियाद पर क्यूँ मिल जाएँ हम

आप तन्हा बहुत हम अकेले बहुत

ज़मीं को और ऊँचा मत उठाओ

ज़मीं का आसमाँ से सर लगेगा

तर्क करनी थी हर इक रस्म-ए-जहाँ

हाँ मगर रस्म-ए-वफ़ा रखनी ही थी

साहिल पे लोग यूँही खड़े देखते रहे

दरिया में हम जो उतरे तो दरिया उतर गया

पुस्तकें 3

 

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