अब्दुल्लाह जावेद
ग़ज़ल 19
अशआर 18
आप के जाते ही हम को लग गई आवारगी
आप के जाते ही हम से घर नहीं देखा गया
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इस ही बुनियाद पर क्यूँ न मिल जाएँ हम
आप तन्हा बहुत हम अकेले बहुत
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ज़मीं को और ऊँचा मत उठाओ
ज़मीं का आसमाँ से सर लगेगा
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तर्क करनी थी हर इक रस्म-ए-जहाँ
हाँ मगर रस्म-ए-वफ़ा रखनी ही थी
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साहिल पे लोग यूँही खड़े देखते रहे
दरिया में हम जो उतरे तो दरिया उतर गया
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