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अब्दुल्लतीफ़ शौक़

1938 | नेपालगंज, नेपाल

अब्दुल्लतीफ़ शौक़

ग़ज़ल 16

अशआर 10

दर्द बख़्शा चैन छीना दिल के टुकड़े कर दिए

हाए किस ज़ालिम पे मैं ने भी भरोसा कर लिया

अपनी सूरत देखना हो अपने दिल में देखिए

दिल सा दुनिया में कोई भी आइना मिलता नहीं

मुझ को किसी यज़ीद की बैअत नहीं क़ुबूल

नेज़े ये रक्खो आओ मिरा सर भी ले चलो

दिल दिया वहशत लिया और ख़ुद को रुस्वा कर लिया

मुख़्तसर सी ज़िंदगी में मैं ने क्या क्या कर लिया

तकमील-ए-वफ़ा होश में मुमकिन ही नहीं था

दीवाना समझ बूझ के दीवाना बना है

पुस्तकें 6

 

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