अब्दुल्लतीफ़ शौक़
ग़ज़ल 16
अशआर 10
दर्द बख़्शा चैन छीना दिल के टुकड़े कर दिए
हाए किस ज़ालिम पे मैं ने भी भरोसा कर लिया
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अपनी सूरत देखना हो अपने दिल में देखिए
दिल सा दुनिया में कोई भी आइना मिलता नहीं
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मुझ को किसी यज़ीद की बैअत नहीं क़ुबूल
नेज़े ये रक्खो आओ मिरा सर भी ले चलो
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दिल दिया वहशत लिया और ख़ुद को रुस्वा कर लिया
मुख़्तसर सी ज़िंदगी में मैं ने क्या क्या कर लिया
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तकमील-ए-वफ़ा होश में मुमकिन ही नहीं था
दीवाना समझ बूझ के दीवाना बना है
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