अब्दुल्लतीफ़ शौक़
ग़ज़ल 16
अशआर 10
दर्द बख़्शा चैन छीना दिल के टुकड़े कर दिए
हाए किस ज़ालिम पे मैं ने भी भरोसा कर लिया
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मुझ को किसी यज़ीद की बैअत नहीं क़ुबूल
नेज़े ये रक्खो आओ मिरा सर भी ले चलो
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तख़रीब के पर्दे में ही ता'मीर है साक़ी
शीशा कोई पिघला है तो पैमाना बना है
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अपनी सूरत देखना हो अपने दिल में देखिए
दिल सा दुनिया में कोई भी आइना मिलता नहीं
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बुत यहाँ मिलते नहीं हैं या ख़ुदा मिलता नहीं
अज़्म मुस्तहकम तो हो दुनिया में क्या मिलता नहीं
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