आबिद सयाल के शेर
कफ़-ए-ख़िज़ाँ पे खिला मैं इस ए'तिबार के साथ
कि हर नुमू का तअल्लुक़ नहीं बहार के साथ
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यहाँ वहाँ हैं कई ख़्वाब जगमगाते हुए
कहीं कहीं कोई ताबीर टिमटिमाती हुई
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