अबसार अब्दुल अली के शेर
वक़्त-ए-रुख़्सत भीगती पलकों का मंज़र याद है
फूल सी आँखों में शबनम की नमी अच्छी लगी
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अपने दिल में आप ही रहता है वो
दूसरा क्या उस में रह सकता नहीं
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