अबुल कलाम आज़ाद के शेर
बे-ख़ुद भी हैं होशियार भी हैं देखने वाले
इन मस्त निगाहों की अदा और ही कुछ है
कोई नालाँ कोई गिर्यां कोई बिस्मिल हो गया
उस के उठते ही दिगर-गूँ रंग-ए-महफ़िल हो गया
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टैग : महफ़िल
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