aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
1928 - 2009 | रामपुर, भारत
इस्लामी चिन्तन के प्रभाव में शायरी करनेवाले प्रसिद्ध शायर
एक हो जाएँ तो बन सकते हैं ख़ुर्शीद-ए-मुबीं
वर्ना इन बिखरे हुए तारों से क्या काम बने
तुम चलो इस के साथ या न चलो
पाँव रुकते नहीं ज़माने के
तमाम उम्र ख़ुशी की तलाश में गुज़री
तमाम उम्र तरसते रहे ख़ुशी के लिए
मिला न घर से निकल कर भी चैन ऐ 'ज़ाहिद'
खुली फ़ज़ा में वही ज़हर था जो घर में था
लोग चुन लें जिस की तहरीरें हवालों के लिए
ज़िंदगी की वो किताब-ए-मो'तबर हो जाइए
दिल्ली
Khilti Kaliyan
Shumara Nmber-002
1971
Shumara Number-000
1972
000
003
004
005
Shumara Number-001
1980
Shumara Number-002
तुम चलो इस के साथ या न चलो पाँव रुकते नहीं ज़माने के
तमाम उम्र ख़ुशी की तलाश में गुज़री तमाम उम्र तरसते रहे ख़ुशी के लिए
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