अदीब सहारनपुरी
ग़ज़ल 9
अशआर 7
हज़ार बार इरादा किए बग़ैर भी हम
चले हैं उठ के तो अक्सर गए उसी की तरफ़
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मंज़िलें न भूलेंगे राह-रौ भटकने से
शौक़ को तअल्लुक़ ही कब है पाँव थकने से
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राहत की जुस्तुजू में ख़ुशी की तलाश में
ग़म पालती है उम्र-ए-गुरेज़ाँ नए नए
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बाँध कर अहद-ए-वफ़ा कोई गया है मुझ से
ऐ मिरी उम्र-ए-रवाँ और ज़रा आहिस्ता
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वीडियो 15
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