अदनान मोहसिन
ग़ज़ल 6
नज़्म 4
अशआर 5
अब उस पे चाँद सितारे भी रश्क करते हैं
वो इक दिया जो कभी दश्त में बुझाया गया
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ग़ुरूर-ए-तिश्ना-दहानी तिरी बक़ा की क़सम
नदी हमारे लबों की तरफ़ उछलती रही
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तेरे पहलू में ज़रा देर को सुस्ता लूँगा
तुझ तक आ पहुँचा अगर नींद में चलता हुआ मैं
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पैरों से टकराते हैं जब झोंके सर्द हवाओं के
हाथ लरज़ने लग जाते हैं चमड़े के दस्तानों में
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मगर मैं ज़ात के सहरा में महव-ए-रक़्स रहा
मुझे भी कोह-ए-निदा की तरफ़ बुलाया गया
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