अफ़रोज़ रिज़वी के शेर
वो महकता है जो ख़ुश्बू के हवालों की तरह
इस को रक्खा है किताबों में गुलाबों की तरह
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छेड़ा है एक नग़्मा-ए-शीरीं भी कू-ब-कू
दिल ने हिलाल-ए-ईद की ताईद के लिए