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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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अफ़रोज़ तालिब

ग़ज़ल 1

 

अशआर 1

क़ुर्बतें भी दूरियों का बन गईं अक्सर सबब

इस लिए बेहतर है उन की बे-रुख़ी बाक़ी रहे

 

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