अफ़सर माहपुरी
ग़ज़ल 9
अशआर 8
कहाँ थी मंज़िल-ए-मक़्सूद अपनी क़िस्मत में
किसी की राहगुज़र भी मिली है मुश्किल से
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हम कहाँ होंगे न जाने इस तमाशा-गाह में
किस तमाशाई से पहले किस तमाशाई के ब'अद
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बहार आएगी गुलशन में तो दार-ओ-गीर भी होगी
जहाँ अहल-ए-जुनूँ होंगे वहाँ ज़ंजीर भी होगी
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दाग़ दिल के हैं सलामत तो कोई बात नहीं
तीरगी लाख सही सुब्ह का इम्काँ रखना
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