अफ़सर नारवी के शेर
तू अगर नाज़ाँ है अपने हुस्न पर माह-ए-मुबीं
दिल भी वो ज़र्रा है जिस की रौशनी कुछ कम नहीं
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रह-गुज़ार-ए-मारिफ़त तक हो रसाई या न हो
जज़्बा-ए-पुर-शौक़ की वारफ़्तगी कुछ कम नहीं
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