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आफ़ताब शम्सी

1930 - 2012 | रामपुर, भारत

आफ़ताब शम्सी

ग़ज़ल 11

नज़्म 14

अशआर 8

देख कर उस को लगा जैसे कहीं हो देखा

याद बिल्कुल नहीं आया मुझे घंटों सोचा

तूफ़ान की ज़द में थे ख़यालों के सफ़ीने

मैं उल्टा समुंदर की तरफ़ भाग रहा था

जो साथ लाए थे घर से वो खो गया है कहीं

इरादा वर्ना हमारा भी वापसी का था

सभी हैं अपने मगर अजनबी से लगते हैं

ये ज़िंदगी है कि होटल में शब गुज़ारी है

मैं जंगलों में दरिंदों के साथ रहता रहा

ये ख़ौफ़ है कि अब इंसाँ के खा ले कोई

पुस्तकें 7

 

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