अफ़ज़ाल फ़िरदौस
ग़ज़ल 8
अशआर 7
इस तरह सताया है परेशान किया है
गोया कि मोहब्बत नहीं एहसान किया है
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जिस को मेरी हालत का एहसास नहीं
उस को दिल का हाल सुना कर रोना क्या
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किसी ने मुझ से कह दिया था ज़िंदगी पे ग़ौर कर
मैं शाख़ पर खिला हुआ गुलाब देखता रहा
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मुश्किल था बहुत मेरे लिए तर्क-ए-तअल्लुक़
ये काम भी तुम ने मिरा आसान किया है
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दीवारों में दर होता तो अच्छा था
अपना कोई घर होता तो अच्छा था
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