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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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अफ़ज़ल मिनहास

ग़ज़ल 18

अशआर 23

दिल की मस्जिद में कभी पढ़ ले तहज्जुद की नमाज़

फिर सहर के वक़्त होंटों पर दुआ भी आएगी

अपनी बुलंदियों से गिरूँ भी तो किस तरह

फैली हुई फ़ज़ाओं में बिखरा हुआ हूँ मैं

उजली उजली ख़्वाहिशों पर नींद की चादर डाल

याद के रौज़न से कुछ ताज़ा हवा भी आएगी

चाँद में कैसे नज़र आए तिरी सूरत मुझे

आँधियों से आसमाँ का रंग मैला हो गया

जिन पत्थरों को हम ने अता की थीं धड़कनें

उन को ज़बाँ मिली तो हमीं पर बरस पड़े

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