अहमद फ़रीद
ग़ज़ल 10
अशआर 5
ज़िंदगी! तुझ सा मुनाफ़िक़ भी कोई क्या होगा
तेरा शहकार हूँ और तेरा ही मारा हुआ हूँ
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
ज़ख़्म गिनता हूँ शब-ए-हिज्र में और सोचता हूँ
मैं तो अपना भी न था कैसे तुम्हारा हुआ हूँ
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
सामने फिर मिरे अपने हैं सो मैं जानता हूँ
जीत भी जाऊँ तो ये जंग मैं हारा हुआ हूँ
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
अपना साया तो मैं दरिया में बहा आया था
कौन फिर भाग रहा है मिरे पीछे पीछे
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए