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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

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अहमद फ़रीद

1970

अहमद फ़रीद

ग़ज़ल 10

अशआर 5

ज़िंदगी! तुझ सा मुनाफ़िक़ भी कोई क्या होगा

तेरा शहकार हूँ और तेरा ही मारा हुआ हूँ

ज़ख़्म गिनता हूँ शब-ए-हिज्र में और सोचता हूँ

मैं तो अपना भी था कैसे तुम्हारा हुआ हूँ

सामने फिर मिरे अपने हैं सो मैं जानता हूँ

जीत भी जाऊँ तो ये जंग मैं हारा हुआ हूँ

अपना साया तो मैं दरिया में बहा आया था

कौन फिर भाग रहा है मिरे पीछे पीछे

सब पे खुलने की हमें ही आरज़ू शायद थी

एक दो होंगे कि हम जिन पर फ़क़ीराना खुले

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