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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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अहमद हुसैन मुजाहिद

1961

अहमद हुसैन मुजाहिद

ग़ज़ल 2

 

अशआर 2

अगर हों गोया तो फिर बे-तकान बोलते हैं

मगर ये लोग लहू की ज़बान बोलते हैं

इक नई मंज़िल की धुन में दफ़अतन सरका लिया

उस ने अपना पाँव मेरे पाँव पर रक्खा हुआ

 

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