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अहमद कमाल परवाज़ी

1944 | उज्जैन, भारत

अहमद कमाल परवाज़ी के ऑडियो

ग़ज़ल

अमल बर-वक़्त होना चाहिए था

नोमान शौक़

कँवारे आँसुओं से रात घाएल होती रहती है

नोमान शौक़

ज़रा ज़रा सी कई कश्तियाँ बना लेना

नोमान शौक़

तुझ से बिछड़ूँ तो तिरी ज़ात का हिस्सा हो जाऊँ

नोमान शौक़

तन्हाई से बचाव की सूरत नहीं करूँ

नोमान शौक़

तुम पे सूरज की किरन आए तो शक करता हूँ

नोमान शौक़

तमाम भीड़ से आगे निकल के देखते हैं

नोमान शौक़

फूल पर ओस का क़तरा भी ग़लत लगता है

नोमान शौक़

बराए-ज़ेब उस को गौहर-ओ-अख़्तर नहीं लगता

नोमान शौक़

मैं रंग-ए-आसमाँ कर के सुनहरी छोड़ देता हूँ

नोमान शौक़

ये गर्म रेत ये सहरा निभा के चलना है

नोमान शौक़

ये लग रहा है रग-ए-जाँ पे ला के छोड़ी है

नोमान शौक़

रौशनी साँस ही ले ले तो ठहर जाता हूँ

नोमान शौक़

वो अब तिजारती पहलू निकाल लेता है

नोमान शौक़

शाम के ब'अद सितारों को सँभलने न दिया

नोमान शौक़

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