अहमद कामरान
ग़ज़ल 10
अशआर 9
इक पल का तवक़्क़ुफ़ भी गिराँ-बार है तुझ पर
और हम कि थके-हारे मसाफ़त से गुरेज़ाँ
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
चाहिए है मुझे इंकार-ए-मोहब्बत मिरे दोस्त
लेकिन इस में तिरा इंकार नहीं चाहिए है
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
मुझ पे तस्वीर लगा दी गई है
क्या मैं दीवार दिखाई दिया हूँ
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
मिरी वफ़ा है मिरे मुँह पे हाथ रक्खे हुए
तू सोचता है कि कुछ भी नहीं समझता मैं
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
रास आएगी मोहब्बत उस को
जिस से होते नहीं वादे पूरे
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए