aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर

अहमद सलमान

ग़ज़ल 4

 

अशआर 5

सब ने माना मरने वाला दहशत-गर्द और क़ातिल था

माँ ने फिर भी क़ब्र पे उस की राज-दुलारा लिक्खा था

कुचल कुचल के फ़ुटपाथ को चलो इतना

यहाँ पे रात को मज़दूर ख़्वाब देखते हैं

  • शेयर कीजिए

जो दिख रहा उसी के अंदर जो अन-दिखा है वो शायरी है

जो कह सका था वो कह चुका हूँ जो रह गया है वो शायरी है

मैं हूँ भी तो लगता है कि जैसे मैं नहीं हूँ

तुम हो भी नहीं और ये लगता है कि तुम हो

वो जिन दरख़्तों की छाँव में से मुसाफ़िरों को उठा दिया था

उन्हीं दरख़्तों पे अगले मौसम जो फल उतरे तो लोग समझे

चित्र शायरी 1

 

वीडियो 5

This video is playing from YouTube

वीडियो का सेक्शन
शायर अपना कलाम पढ़ते हुए
kaali raat ke sehraon me noor se para likha tha

Salman Ahmad's poetry is the assimiliation of various shades of life. The griefness of the deteriorated human values has never been penned so beautifully ever. This Pakistani poet who has spent a long part of his life in Canada can be seen reciting his ghazals for Rekhta Studio at India Islamic Cultural Centre. अहमद सलमान

काली रात के सहराओं में नूर-सिपारा लिक्खा था

अहमद सलमान

जो दिख रहा उसी के अंदर जो अन-दिखा है वो शाइरी है

अहमद सलमान

जो हम पे गुज़रे थे रंज सारे जो ख़ुद पे गुज़रे तो लोग समझे

अहमद सलमान

शबनम है कि धोका है कि झरना है कि तुम हो

अहमद सलमान

ऑडियो 3

जो दिख रहा उसी के अंदर जो अन-दिखा है वो शाइरी है

जो हम पे गुज़रे थे रंज सारे जो ख़ुद पे गुज़रे तो लोग समझे

शबनम है कि धोका है कि झरना है कि तुम हो

Recitation

 

"कराची" के और शायर

Recitation

Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi

GET YOUR PASS
बोलिए