अहमर नदीम
ग़ज़ल 22
अशआर 14
कितने रिश्तों का मैं ने भरम रख लिया
इक त'अल्लुक़ से दामन छुड़ाते हुए
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दिल लगाने को सारा जहाँ था मगर
सोचता कौन है दिल लगाते हुए
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मौत बर-हक़ है जब आ जाए हमें क्या लेकिन
ज़िंदगी हम तिरी रफ़्तार से डर जाते हैं
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क़ाफ़िले में हर इक फ़र्द मुख़्तार है
क़ाफ़िला देख लेना लुटेगा ज़रूर
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चुपके चुपके अपने अंदर जाते हैं
सहमे सहमे बाहर आना पड़ता है
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