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अहसन गुलफ़ाम

1998 | आज़मगढ़, भारत

अहसन गुलफ़ाम

ग़ज़ल 3

 

अशआर 8

शहर का शहर ये पीछे जो पड़ा है मेरे

तेरे दीवाने में कुछ बात तो होती होगी

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ये शाइ'री का तकल्लुफ़ बदन पे अच्छा लिबास

सब इल्तिज़ाम उसी एक बे-वफ़ा के लिए

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मुझ को दावा नहीं यूसुफ़ सा हसीं होने का

फिर भी है मेरा ज़ुलेख़ाओं में चर्चा साहब

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अब कहाँ मिलता है आशिक़ कोई सच्चा साहब

ज़ख़्म ही कोई लगा दें मुझे अच्छा साहब

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रहने को अपने पास कोई छत नहीं मगर

चिड़ियों के चहचहाने को आँगन बना दिया

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