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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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एहसान शाहजहाँपुरी

1857 - 1914

एहसान शाहजहाँपुरी

अशआर 1

इस को सोचिए कि सितम या करम हुआ

ख़ंजर उठाइए सर-ए-तस्लीम ख़म हुआ

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