ऐन ताबिश
ग़ज़ल 18
नज़्म 11
अशआर 14
आज भी उस के मिरे बीच है दुनिया हाइल
आज भी उस के मिरे बीच की मुश्किल है वही
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इक ज़रा चैन भी लेते नहीं 'ताबिश'-साहब
मुल्क-ए-ग़म से नए फ़रमान निकल आते हैं
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एक ख़ुश्बू थी जो मल्बूस पे ताबिंदा थी
एक मौसम था मिरे सर पे जो तूफ़ानी था
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हर ऐसे-वैसे से क़ुफ़्ल-ए-क़फ़स नहीं खुलता
इस इम्तिहाँ के लिए कुछ हक़ीर होते हैं
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रेखाचित्र 1
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