संपूर्ण
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अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल 72
नज़्म 8
अशआर 145
हम आह भी करते हैं तो हो जाते हैं बदनाम
वो क़त्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होता
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हास्य 3
क़ितआ 34
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हर एक से सुना नया फ़साना हम ने देखा दुनिया में एक ज़माना हम ने अव्वल ये था कि वाक़फ़ियत पे था नाज़ आख़िर ये खुला कि कुछ न जाना हम ने
वीडियो 11
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