अकबर हैदराबादी
ग़ज़ल 22
नज़्म 9
अशआर 21
आँख में आँसू का और दिल में लहू का काल है
है तमन्ना का वही जो ज़िंदगी का हाल है
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चराग़-ए-राहगुज़र लाख ताबनाक सही
जला के अपना दिया रौशनी मकान में ला
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मुश्किल ही से कर लेती है दुनिया उसे क़ुबूल
ऐसी हक़ीक़त जिस में फ़साना कम कम होता है
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