अख़तर अली तलहरी
ग़ज़ल 1
अशआर 1
पा-ए-सनम है और जबीन-ए-हरम-नवाज़
रस्म-ओ-रिवाज-ए-शहर-ए-मोहब्बत न पूछिए
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere