अख्तर लख़नवी
ग़ज़ल 9
अशआर 11
जज़्बे की कड़ी धूप हो तो क्या नहीं मुमकिन
ये किस ने कहा संग पिघलता ही नहीं है
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सूने कितने बाम हुए कितने आँगन बे-नूर हुए
चाँद से चेहरे याद आते हैं चाँद निकलते वक़्त बहुत
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हमें ख़ुदा पे भरोसा है ना-ख़ुदा पे नहीं
ख़ुदा जो देता है वो ना-ख़ुदा नहीं देता
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हसद का रंग पसंदीदा रंग है सब का
यहाँ किसी को कोई अब दुआ नहीं देता
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मौसम-ए-गुल तिरे सदक़े तिरी आमद के निसार
देख मुझ से मिरा साया भी जुदा है अब के
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