अख़्तर मुज़फ़्फ़रपुरी के शेर
एक एहसाँ रह गया सर पर तुम्हारी तेग़ का
वर्ना जो कुछ मुश्किलें थीं आज आसाँ हो गईं
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere