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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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अख़्तर शाहजहाँपुरी

1940 | शाहजहाँपुर, भारत

क्लासिकी अंदाज़ की शायरी के लिए मशहूर

क्लासिकी अंदाज़ की शायरी के लिए मशहूर

अख़्तर शाहजहाँपुरी

ग़ज़ल 17

अशआर 20

अभी तहज़ीब का नौहा लिखना

अभी कुछ लोग उर्दू बोलते हैं

ये मो'जिज़ा हमारे ही तर्ज़-ए-बयाँ का था

उस ने वो सुन लिया था जो हम ने कहा था

अपनों से जंग है तो भले हार जाऊँ मैं

लेकिन मैं अपने साथ सिपाही लाऊँगा

कोई मंज़र नहीं बरसात के मौसम में भी

उस की ज़ुल्फ़ों से फिसलती हुई धूपों जैसा

वो जुगनू हो सितारा हो कि आँसू

अँधेरे में सभी महताब से हैं

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