अख़्तर शेख़
ग़ज़ल 10
अशआर 1
लफ़्ज़ लिखना है तो फिर काग़ज़ की निय्यत से न डर
इस क़दर इज़हार की बे-मानविय्यत से न डर
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere