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अकरम महमूद

परम्परा और अधुनिक काव्य विचारधारा के सामंजस्य का शायर, संजीदा अदबी महफ़िलों में लोकप्रिय

परम्परा और अधुनिक काव्य विचारधारा के सामंजस्य का शायर, संजीदा अदबी महफ़िलों में लोकप्रिय

अकरम महमूद

ग़ज़ल 12

अशआर 15

पाँव उठते हैं किसी मौज की जानिब लेकिन

रोक लेता है किनारा कि ठहर पानी है

अब दिल भी दुखाओ तो अज़िय्यत नहीं होती

हैरत है किसी बात पे हैरत नहीं होती

सितारा आँख में दिल में गुलाब क्या रखना

कि ढलती उम्र में रंग-ए-शबाब क्या रखना

दो चार बरस जितने भी हैं जब्र ही सह लें

इस उम्र में अब हम से बग़ावत नहीं होती

अब दर्द भी इक हद से गुज़रने नहीं पाता

अब हिज्र में वो पहली सी वहशत नहीं होती

पुस्तकें 1

 

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