अकरम महमूद
ग़ज़ल 12
अशआर 15
पाँव उठते हैं किसी मौज की जानिब लेकिन
रोक लेता है किनारा कि ठहर पानी है
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अब दिल भी दुखाओ तो अज़िय्यत नहीं होती
हैरत है किसी बात पे हैरत नहीं होती
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सितारा आँख में दिल में गुलाब क्या रखना
कि ढलती उम्र में रंग-ए-शबाब क्या रखना
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दो चार बरस जितने भी हैं जब्र ही सह लें
इस उम्र में अब हम से बग़ावत नहीं होती
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बस इतना याद है इक भूल सी हुई थी कहीं
अब इस से बढ़ के दुखों का हिसाब क्या रखना
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