अली अहमद रिफ़अत के शेर
दास्तान-ए-हुस्न जब फैली तो ला-महदूद थी
और जब सिमटी तो तेरा नाम हो कर रह गई
- अपने फ़ेवरेट में शामिल कीजिए
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere