दिगर-गूँ है जहाँ तारों की गर्दिश तेज़ है साक़ी अली रज़ा
मिलती है ख़ू-ए-यार से नार इल्तिहाब में अली रज़ा
सब्र हर बार इख़्तियार किया अली रज़ा
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