अली ज़ुबैर के शेर
लोग मोहतात हैं रवय्यों में
क़ुर्बतों में भी फ़ासला है यहाँ
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दिल का छूना था कि जज़्बात हुए पत्थर के
ऐसा लगता है कि हम शहर-ए-तिलिस्मात में हैं
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