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अल्लामा इक़बाल के उद्धरण
इन्सानों से मिलने वाले सदमात के इलावा इन्सान की याददाश्त आम तौर पर ख़राब होती है।
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इन्साफ़ एक बेकराँ ख़ज़ाना है। लेकिन हमें इसे रहम के चोर से महफ़ूज़ रखना चाहिए।
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अफ़राद और कौमें ख़त्म हो जाती हैं। मगर उनके बच्चे यानी तसव्वुरात कभी ख़त्म नहीं होते।
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यक़ीन एक बड़ी ताक़त है। जब मैं देखता हूँ कि दूसरा भी मेरे अफ़्कार का मुअय्यिद है, तो उसकी सदाक़त के बारे में मेरा एतिमाद बे-इंतिहा बढ़ जाता है।
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हमारी रूह को उस वक़्त अपना इरफ़ान हासिल होता है, जब हम किसी मुफ़क्किर से रुशनास होते हैं। जब तक मैं गोएटे के तसव्वुरात की ला-मुतनाहियत से बे-ख़बर था। उस वक़्त तक मैं अपनी कम-माएगी पर मुत्तला ना था।
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मैथ्यू अर्नाल्ड शायरी को तन्क़ीद-ए-हयात बताता है। ज़िंदगी को तन्क़ीद-ए-शाइरी कहना भी उतना ही दुरुस्त है।
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शाइरी में मंतिक़ी सच्चाई की तलाश बिल्कुल बे-कार है, बे-तख़य्युल का नसब-उल-ऐन हुस्न है, ना कि सच्चाई। इसलिए किसी फ़नकार की अज़मत को ज़ाहिर करने के लिए उसकी तख़्लीक़ात में से वो इक़्तिबासात पेश न कीजिए। जो आपकी राय में साईंसी हक़ायक़ पर मुश्तमिल हों।
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तारीख़ एक तरह की अमली अख़्लाक़ियात है। दूसरे उलूम की तरह अगर अख़्लाक़ियात एक तजुर्बाती इल्म है। तो उसे इन्सानी तजुर्बात के इन्किशाफ़ात पर मब्नी होना चाहीए। इस नुक़्ता-ए-नज़र के बर्मला इज़हार से उन लोगों के भी नाज़ुक एहसासात को यक़ीनन सदमा पहुँचेगा। जो अख़लाक़ के मुआमले में सख़्त-गीर होने के दावेदार हैं। लेकिन जिनका अवामी किरदार तारीख़ी तालीमात से मुतय्यन होता है।
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