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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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अल्लामा इक़बाल

1877 - 1938 | लाहौर, पाकिस्तान

महान उर्दू शायर, पाकिस्तान के राष्ट्र-कवि जिन्होंने 'सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा' और 'लब पे आती है दुआ बन के तमन्ना मेरी' जैसे गीतों की रचना की

महान उर्दू शायर, पाकिस्तान के राष्ट्र-कवि जिन्होंने 'सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा' और 'लब पे आती है दुआ बन के तमन्ना मेरी' जैसे गीतों की रचना की

अल्लामा इक़बाल के उद्धरण

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इन्साफ़ एक बेकराँ ख़ज़ाना है। लेकिन हमें इसे रहम के चोर से महफ़ूज़ रखना चाहिए।

शाइरी में मंतिक़ी सच्चाई की तलाश बिल्कुल बे-कार है, बे-तख़य्युल का नसब-उल-ऐन हुस्न है, ना कि सच्चाई। इसलिए किसी फ़नकार की अज़मत को ज़ाहिर करने के लिए उसकी तख़्लीक़ात में से वो इक़्तिबासात पेश कीजिए। जो आपकी राय में साईंसी हक़ायक़ पर मुश्तमिल हों।

एक मुक़द्दस झूट है।

तारीख़ एक तरह की अमली अख़्लाक़ियात है। दूसरे उलूम की तरह अगर अख़्लाक़ियात एक तजुर्बाती इल्म है। तो उसे इन्सानी तजुर्बात के इन्किशाफ़ात पर मब्नी होना चाहीए। इस नुक़्ता-ए-नज़र के बर्मला इज़हार से उन लोगों के भी नाज़ुक एहसासात को यक़ीनन सदमा पहुँचेगा। जो अख़लाक़ के मुआमले में सख़्त-गीर होने के दावेदार हैं। लेकिन जिनका अवामी किरदार तारीख़ी तालीमात से मुतय्यन होता है।

इन्सानों से मिलने वाले सदमात के इलावा इन्सान की याददाश्त आम तौर पर ख़राब होती है।

हमारी रूह को उस वक़्त अपना इरफ़ान हासिल होता है, जब हम किसी मुफ़क्किर से रुशनास होते हैं। जब तक मैं गोएटे के तसव्वुरात की ला-मुतनाहियत से बे-ख़बर था। उस वक़्त तक मैं अपनी कम-माएगी पर मुत्तला ना था।

मैथ्यू अर्नाल्ड शायरी को तन्क़ीद-ए-हयात बताता है। ज़िंदगी को तन्क़ीद-ए-शाइरी कहना भी उतना ही दुरुस्त है।

यक़ीन एक बड़ी ताक़त है। जब मैं देखता हूँ कि दूसरा भी मेरे अफ़्कार का मुअय्यिद है, तो उसकी सदाक़त के बारे में मेरा एतिमाद बे-इंतिहा बढ़ जाता है।

अफ़राद और कौमें ख़त्म हो जाती हैं। मगर उनके बच्चे यानी तसव्वुरात कभी ख़त्म नहीं होते।

तहज़ीब एक ताक़तवर इन्सान की फ़िक्र है।

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