अमान अली सहर लखनवी के शेर
गो सग-ए-दुनिया हूँ पर तन्हा-ख़ुरी मुझ में नहीं
टुकड़ा टुकड़ा बाँट खाया जो मयस्सर हो गया
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere