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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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अम्बर बहराईची

1949 - 2021 | लखनऊ, भारत

विख्यात संस्कृत विद्वान, साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित।

विख्यात संस्कृत विद्वान, साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित।

अम्बर बहराईची

ग़ज़ल 18

नज़्म 10

अशआर 18

आम के पेड़ों के सारे फल सुनहरे हो गए

इस बरस भी रास्ता क्यूँ रो रहा था देखते

जान देने का हुनर हर शख़्स को आता नहीं

सोहनी के हाथ में कच्चा घड़ा था देखते

रोज़ हम जलती हुई रेत पे चलते ही थे

हम ने साए में खजूरों के भी आराम किया

हर इक नदी से कड़ी प्यास ले के वो गुज़रा

ये और बात कि वो ख़ुद भी एक दरिया था

हर फूल पे उस शख़्स को पत्थर थे चलाने

अश्कों से हर इक बर्ग को भरना था हमें भी

पुस्तकें 16

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