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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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अमीर मीनाई

1829 - 1900 | हैदराबाद, भारत

दाग़ देहलवी के समकालीन। अपनी ग़ज़ल ' सरकती जाए है रुख़ से नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता ' के लिए प्रसिद्ध हैं।

दाग़ देहलवी के समकालीन। अपनी ग़ज़ल ' सरकती जाए है रुख़ से नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता ' के लिए प्रसिद्ध हैं।

अमीर मीनाई के ऑडियो

ग़ज़ल

जब से बाँधा है तसव्वुर उस रुख़-ए-पुर-नूर का

नोमान शौक़

हँस के फ़रमाते हैं वो देख के हालत मेरी

नोमान शौक़

अच्छे ईसा हो मरीज़ों का ख़याल अच्छा है

फ़सीह अकमल

तीर पर तीर लगाओ तुम्हें डर किस का है

फ़सीह अकमल

न बेवफ़ाई का डर था न ग़म जुदाई का

फ़सीह अकमल

पूछा न जाएगा जो वतन से निकल गया

फ़सीह अकमल

फ़िराक़-ए-यार ने बेचैन मुझ को रात भर रक्खा

फ़सीह अकमल

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