अमित अहद
ग़ज़ल 6
अशआर 5
जब वफ़ा ही नहीं ज़माने में
इश्क़ सर पर सवार कौन करे
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देर तक साथ भीगे हम उस के
हम ने यूँ कामयाब की बारिश
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कभी मंदिर कभी मस्जिद पे है इस का बसेरा
धरम इंसानियत का बस कबूतर जानता है
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यूँ तो सफ़र किया है कितने ही रास्तों पर
लेकिन तिरे ही घर का रस्ता पसंद आया
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कभी मिलोगे ये सोच कर दिल
हज़ार सपने बुना करेगा
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