अमजद नजमी
ग़ज़ल 22
नज़्म 20
अशआर 13
वफ़ा की आड़ में क्या क्या हुई जफ़ा हम पर
जो दोस्ती यही ठहरी तो दुश्मनी क्या है
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जब दिल ही नहीं है पहलू में फिर इश्क़ का सौदा कौन करे
अब उन से मोहब्बत कौन करे अब उन की तमन्ना कौन करे
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किस ग़लत-फ़हमी में अपनी उम्र सारी कट गई
इक वफ़ा-ना-आश्ना को बा-वफ़ा समझा था मैं
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वही सुब्ह-ओ-मसा वही शब-ओ-रोज़
ज़िंदगी है वबाल क्या कहिए
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न कुछ आलिम समझते हैं न कुछ जाहिल समझते हैं
मोहब्बत की हक़ीक़त को बस अहल-ए-दिल समझते हैं
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