Font by Mehr Nastaliq Web

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर
noImage

अमजद नजमी

1899 - 1974

अमजद नजमी

ग़ज़ल 22

नज़्म 21

अशआर 13

वफ़ा की आड़ में क्या क्या हुई जफ़ा हम पर

जो दोस्ती यही ठहरी तो दुश्मनी क्या है

जब दिल ही नहीं है पहलू में फिर इश्क़ का सौदा कौन करे

अब उन से मोहब्बत कौन करे अब उन की तमन्ना कौन करे

किस ग़लत-फ़हमी में अपनी उम्र सारी कट गई

इक वफ़ा-ना-आश्ना को बा-वफ़ा समझा था मैं

कोई समझे समझे इस हक़ीक़त को मगर 'नजमी'

हम अपने दर्द-ए-दिल को इश्क़ का हासिल समझते हैं

कुछ आलिम समझते हैं कुछ जाहिल समझते हैं

मोहब्बत की हक़ीक़त को बस अहल-ए-दिल समझते हैं

पुस्तकें 32

Recitation

Jashn-e-Rekhta 10th Edition | 5-6-7 December Get Tickets Here

बोलिए