अमजद शहज़ाद के शेर
तुझ से मिरा मुआमला होता ब-राह-ए-रास्त
ये इश्क़ दरमियान न होता तो ठीक था
धुल जाते हैं इक दिन आख़िर जैसे भी हों दाग़
मन का मैल और मैली चादर धो सकता है कौन
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड