अमृतांशु शर्मा के दोहे
सज-धज कर बैठी रही चौखट पर बेचैन
साजन घर आए नहीं कैसे काटूँ रैन
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अध-जल गागर कर रही ख़ुद अपने पर नाज़
जब जब मत मारी गई गूँज उठी आवाज़
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