अनीस अहमद अनीस
ग़ज़ल 7
नज़्म 1
अशआर 9
अब ग़म का कोई ग़म न ख़ुशी की ख़ुशी मुझे
आख़िर को रास आ ही गई ज़िंदगी मुझे
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गवारा ही न थी जिन को जुदाई मेरी दम-भर की
उन्हीं से आज मेरी शक्ल पहचानी नहीं जाती
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कभी इक बार हौले से पुकारा था मुझे तुम ने
किसी की मुझ से अब आवाज़ पहचानी नहीं जाती
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तवाफ़-ए-माह करना और ख़ला में साँस लेना क्या
भरोसा जब नहीं इंसान को इंसान के दिल पर
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हमीं ने चुन लिए फूलों के बदले ख़ार दामन में
फ़क़त गुलचीं के सर इल्ज़ाम ठहराया नहीं जाता
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