अनीस अशफ़ाक़
अशआर 12
इस पे हैराँ हैं ख़रीदार कि क़ीमत है बहुत
मेरे गौहर की तब-ओ-ताब नहीं देखते हैं
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ये ख़ाना हमेशा से वीरान है
कहाँ कोई दिल के मकाँ में रहा
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देखा है किसी आहू-ए-ख़ुश-चश्म को उस ने
आँखों में बहुत उस की चमक आई हुई है
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क्यूँ नहीं होते मुनाजातों के मअनी मुन्कशिफ़
रम्ज़ बन जाता है क्यूँ हर्फ़-ए-दुआ हम से सुनो
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ग़ज़ल 29
नज़्म 1
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