चौबीस से ज़ियादा किताबों के मुसन्निफ़ अनीस अशफ़ाक़ शायर भी हैं, नक़्क़ाद और अफ़्साना-निगार भी। उनके कई नॉवेल जैसे 'हैच' (2024) 'दुखियारे' (2014), 'ख़्वाब-सराब' (2017) और 'परी-नाज़ और परिंदे' (2018) शाय हो चुके हैं जिन्हें पसंदीदगी की निगाह से देखा गया है। 2022 में उन्हें अपने नावल ख़्वाब-सराब के लिए साहित्य अकादमी अवार्ड से सम्मानित किया गया।
अनीस अशफ़ाक़ का बुनियादी मैदान तन्क़ीद है। नए और पुराने अदब की ताबीर-ओ-तहलील से मुतअल्लिक़ अब तक उनके पाँच तन्क़ीदी मज्मूए: 'उर्दू ग़ज़ल में अलामत निगारी' (1995), 'अदब की बातें' (1996), 'बह्स-ओ-तन्क़ीद' (2009), 'ग़ज़ल का नया अलामती निज़ाम' (2011) और 'ग़ालिब: दुनिया-ए-मआनी का मुतालेआ' (2022) शाए हो चुके हैं और तीन तन्क़ीदी किताबें 'दरिया के रंग: उर्दू मरसिए के मानवी जिहात, 'अदब की बातें' (दूसरा इज़ाफ़ा शूदा ऐडीशन) और 'सीधी बातें सादा मुतालिब' इशाअत के लिए तैयार हैं। अनीस अशफ़ाक़ के तन्क़ीदी मज़ामीन यूँ तो हुसूल-ए-तालीम के ज़माने ही से अदबी जरीदों में छपने लगे थे लेकिन किताब 'उर्दू ग़ज़ल में अलामत-निगारी' के शाए होने के बाद अदबी दुनिया में एक नाक़िद की हैसियत से उनकी पहचान मुस्तहकम हुई।
अनीस अशफ़ाक़ ने तर्जुमे भी किए हैं , ख़ाके और मोनोग्राफ़ भी लिखे हैं, रपोर्ताझ़, सफ़र-नामा और सवानिह भी। फ़िल-वक़्त वो अपने बचपन में देखे हुए लखनऊ के अहवाल-ओ-आसार पर एक किताब लिखने में मसरूफ़ हैं।