अंजली सहर के शेर
हम से कटता नहीं ग़मों का पहाड़
लोग कहते हैं ज़िंदगी कम है
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शर्म से डूब मरने का है मक़ाम
तेरे होते ख़ुशी उदास हैं हम
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अब तो ये भी समझ से बाहर है
किस का दुख है जो वाक़'ई दुख है
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है इन दियों का मुक़द्दर भी बेटियों जैसा
कहाँ बनाए गए और हुए कहाँ रौशन
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दाइमी दुख नहीं होता कोई
ज़ख़्म कैसे भी हो भर जाते हैं
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